Thursday, October 15, 2015

हिंदी में दूसरा लेख छपा bbchindi.com पे

 हिंदुस्तानी महिला, काम और काम की मज़दूरी पे लिखा ये लेख ज़रूर पढ़िए। टिप्पणी करना ज़रूरी नहीं :

http://www.bbc.com/hindi/india/2015/10/151009_women_empowerment_india_figures_ac


मकिन्ज़ी रिपोर्ट के आँकड़े महिलाओं का योगदान नहीं बताते, ये बतलाते हैं जीडीपी के ज़रिए आर्थिक इंसाफ़ या हक़ नहीं नापा जा सकता. मुश्किल ये है कि महिलाओं के श्रम का बाज़ारीकरण नहीं हुआ है. काम तो कर रही हैं. वेतन दे दो, बराबरी भी हो जाएगी.

पर अपने ही घर-परिवार से आर्थिक हक़ माँगना आसान नहीं. क़ीमत मकान की होती है, घर की नहीं. सबसे बड़ी बात, काम से इनकार नहीं कर सकती वो. बच्चे, बूढ़े, जानवर– यह सिर्फ़ आर्थिक नाते नहीं हैं, उसकी ज़िंदगी हैं. इन्हें छोड़ भी नहीं सकती. इसी तरह औरत अक्सर मोहताज रही.

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